मुखौटा - 4

  • 8.6k
  • 2.6k

मुखौटा अध्याय 4 "सब आराम से कर लेंगे, कोई जल्दी नहीं है । राज खुल कर सबके सामने आ जाएगा। उसको किताब सब निकाल कर देने को बोलना। तीन दिन तक स्कूल नहीं जा सकोगी।“ "क्यों?" "जो बोला है उसे मानो मालिनी", अम्मा बड़े बेमन से बोली। फिर अड़ोस-पड़ोस में देखकर धीमी आवाज में बोली; "यदि घाघरे में दाग लग जाए तो ? सब को पता नहीं चलना चाहिए ! वह शर्म की बात होती है!" "यह क्यों ऐसे आया ?" मैं आश्चर्यचकित थी । "यह सभी लड़कियों को आता है री मेरी मां। तुम्हें कुछ जल्दी आ गया है।"