गंधैला

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रमेसर तिवारी जमींदार खानदान से थे..जमींदारी उन्मूलन भले हो गयी हो पर 'मुई हाथी तौ सवाव लाख' वाली बात उनपर फिट बैठ रही थी..बड़ा सा दो मंजिला मकान था..क्षेत्र के बड़े काश्तकार में सम्मान जनक स्थान था..नौकर -चाकर थे..जवार में रुतबा था..क्षेत्र की कोई पंचायत बिना रमेसर तिवारी के नही निपटती थी..सबकुछ था..यदि कुछ नही था तो वह थी शिक्षा.. जब कोई आकर कहता मेरा बेटा पढ़ाई में अव्वल आया है तो रमेसर तिवारी जल-भुन जाते थे..अपने थे तो चार बेटे पर हाईस्कूल कोई पार नही कर पाया था..ऐसे में जब भी सुनते कि फलां का लड़का पढ़ाई में बड़ा