मुखौटा अध्याय 3 नानी होती तो वह 'कहीं जाकर मरो' श्राप देती। मैं मौन होकर उसे चुपचाप जाते हुए देखकर लाइब्रेरी के अंदर घुस गई। "मुझे एक्साइटमेंट चाहिए। हुंह ! " सुंदरी बुआ नाचने जाने के लिए सज-धज कर तैयार रहती । शायद इसीलिए, मुझे कई बार लगता है कि क्या उससे बदला लेने के लिए ही उसका आदमी मरा ? जब तक वे जिंदा रहे उसकी सुंदरता, उसकी योग्यता और उत्साह को वे दबा नहीं सके। उसे एक कोने में पटकने की एक मूर्खतापूर्ण सोच ने ही उन्हें मार डाला। सुंदरी बुआ और रोहिणी में कोई साम्यता नहीं। मिलान करके