सिर्फ़ देह नहीं स्त्री

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संगोष्ठी की समाप्ति होते -होते शाम गहरी हो गयी थी।मुझे चिंता हुई कि घर कैसे जाऊँगी?मेरा घर थोड़ी अटपटी जगह है, जहां जाने के लिए सवारी आसानी से नहीं मिलती।मुझे साहित्य -संस्कृति से लगाव है।खुद भी लिखती- पढ़ती हूँ इसलिए ऐसे कार्यक्रमों को छोड़ना भी नहीं चाहती।जब से मैं अपने पति से अलग हुई हूँ कुछ ज्यादा ही साहित्य को समर्पित हो गयी हूँ।मेरे पति संस्कृतिकर्मी रहे थे इसलिए शहर के लगभग सभी लेखक -साहित्यकार उनसे परिचित थे और उनके ही कारण मुझसे भी परिचित हुए थे।सभी उनके रहते मेरे घर आते -जाते रहे थे और मैं भी उनकी गाड़ियों