मेरे घर आना ज़िंदगी - 8

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मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (8) समय बीतता गया। एक दिन अचानक श्रीकांत जी (बाबा नागार्जुन के पुत्र जो अब यात्री प्रकाशन संभालते हैं) का फोन आया "प्रमिला वर्मा जी ने आप की कहानियों की पांडुलिपि भेजी है । मैं प्रूफ के लिए पाण्डुलिपि कुरियर कर रहा हूँ। " हाँ याद आया प्रमिला जब ऑपरेशन के बाद मुझे देखने आई थी तो मेरी कहानियों की फाइल यह कह कर ले गई थी कि इन्हें पढ़कर तुम्हें वापस कर दूंगी । उस फाइल में धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, शिक, वामा, ज्ञानोदय, सारिका, माधुरी, हंस, वागर्थ, आदि में छपी कहानियाँ थीं।