मेरे घर आना ज़िंदगी - 7

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मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (7) मेरे लिए मेरे जीवन में आया एक एक व्यक्ति भविष्य के लिए मेरी आँखें खोलता गया फिर चाहे आँखें उससे मिले धोखे से खुली हो या मेरे प्रति ईमानदारी से । रवींद्र श्रीवास्तव मेरे ईमानदार दोस्तों में से हैं । कहीं एक जगह नौकरी में स्थायित्व नहीं मिला उन्हें। हालांकि वे बड़े बड़े राष्ट्रीय स्तर के अखबारों से जुड़े रहे। वे नवभारत में समाचार संपादक, हिंदुस्तान टाइम्स में सह संपादक, टाइम्स ग्रुप में सीनियर संपादक, नवभारत टाइम्स में संपादक और संझा लोकस्वामी में संपादक के पद पर थे । नौकरियों की वजह