नींव की ईंट

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वह बूढ़ी औरत पसीने से तर-बतर थी..पर बूढ़ी हड्डियों में जोश और उत्साह देखते बनता था..सर पर तीन ईंटे तूली कपड़े में बांधे लिये चली जा रही थी..शरीर धूल धूसरित..पर चेहरे पर उत्साही चमक..होंठो पर राम जी का गीत.."लल्ला मत हो और उदास,कि मैं आ रही महल बनवाने को.."गीत गाते हुये उसकी नजरें रास्ते में नल तलाश रही थीं.. शायद बूढ़ी अम्मा को प्यास लगी थी..तभी सड़क किनारे बसे एक गाँव में एक नीम के नीचे नल दिखा..वहीं कुछ औरतें नीम पर जल चढ़ा रही थीं..अम्मा ने ईंटों को साफ जगह रखा और नल से पानी पीने लगीं..औरतें जल चढ़ाकर