इन्हीं दंगों की आग गुरप्रीत और सरबजीत के गांव तक भी जा पहुंची थी,पूरा गांव जैसे दहशत और डर के साए में डूबा था,हर जगह मातम ही मातम था।। बहुत ही मनहूस घड़ी थी वो, कोई सुरक्षित नहीं था उस समय ना सलमा ना सीता,कुरान और गीता में लिखे संदेश को लोग भूल गए थे,बस हर छुरे और तलवार पर खून ही खून नजर आ रहा था। अबलाएं डर रहीं थीं, घूंघट में छुपी हर दुल्हन सोच रही थी कि उसकी चूड़ियां सुरक्षित रहें,हर बहन का आंचल दुहाई दे रहा था, लोगों के खिड़की दरवाजे नहीं खुल रहे