मेरा स्वर्णिम बंगाल - 6

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मेरा स्वर्णिम बंगाल संस्मरण (अतीत और इतिहास की अंतर्यात्रा) मल्लिका मुखर्जी (6) क़रीब पाँच घंटे की यात्रा के बाद हम अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे थे। आह! दुनिया के नक़्शे में भले ही प्रदेश का नाम बदल गया था पर गाँव का नाम वही था। लग रहा था बरसों से संजोया कोई सपना हक़ीकत बन सामने खड़ा है! बोर्ड के ठीक नीचे एक मुर्गी घूम रही थी। ओह! अब पता चला, पापा को मुर्गियाँ क्यों इतनी पसंद थी। गुजरात में पापा की पश्चिम रेल्वे की नौकरी के रहते जहाँ भी उनका तबादला होता, कुछ मुर्गियाँ जरुर हमारे साथ रहती। हक़ीकत