साहित्य और लोकप्रियता की कसौटी

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साहित्य और लोकप्रियता की कसौटी साहित्य के मूल्यांकन के अनेक मानदण्ड रहे हैं। सौष्ठववादी मूल्यांकन में कृति की आन्तरिक संरचना ही उसके विमर्श का आधार है। इसके अन्तर्गत साहित्यिक रचना अपने आप में स्वायत्त है। इसके विपरीत समाजशास्त्रीय समीक्षा-दृष्टि साहित्य को सामाजिक परिवेश से जोड़कर देखती है और उसकी सार्थकता का मूल्यांकन व्यापक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ही करती है। इस मूल्यांकन में साहित्य का कलागतपक्ष सर्वथा उपेक्षित तो नहीं होता लेकिन कृति को जीवन से विभक्त न मानकर उससे संपृक्त माना जाता है। साहित्य के प्रयोजन और उसके सरोकारों के गम्भीर चिन्तन के बीच यह तथ्य भी