बिन साजन ना भावे सावन

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काले बदरे ,ओर रिमझिम फुहार...मोर के पंख सावन के झूले,गरजते बादलों में आपसी बातचीत ओर तुम ओर मैं।क्या तुम मुझे फिर अपने रंग में मुझे रंगोंगे मेरी रूह को तुम छुओगे। क्या हम चमकती बिजली के डर से एक दूसरे से फिर लिपट लिप्त हो जाएंगे। रूही अपनी खिड़की के ग्रिल से सिर टिकाए ,खुले आँखों से उसे महसूस कर रही जिसे वो कब का खो चुकी है। उन कड़कती बिजली और गरजते बदलो से कुछ अपनी भी कहने की कोशिश कर रही। तेज वर्षा ओर रूही एक दूसरे से कह अपने आंसू को व्यक्त करने की कोशिश। ए बादलों सुनो