आधा आदमी - 31

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आधा आदमी अध्‍याय-31 ‘‘मैंने सबके पीछे अपनी जिंदगी खराब कर ली। पर मुझे कोई समझ नहीं पाया। क्या नहीं किया अपने घरवालों के लिए। देखों कोई अब झांकने तक नहीं आता कि मैं जिंदा भी हूँ या मर गई। जिस तरह से मैं अपनी जिंदगी काट रही हूँ कोई हिजड़ा होती तो अब तक मर खप जाती......।‘‘ मेरी बात से दोनों काफ़ी ग़मगीन हो गए थे। 6-3-1996 दोपहर में हम लोग खाना खाकर बैठे ही थे। कि ड्राइवर की बीबी आई और तुनक उठी, ‘‘सुनो ड्राइवर, तुम तो यहाँ आ के घुसे बैठ हो और वहाँ बिटिया को देखने लड़के