कुछ बातें हम दिल के किसी कोने में छूपा देते हैं,और इतने गहरे से बांधते हैं कि वो दोबारा हमें ही नहीं मिलते।बस कभी किसी मोड़ पर अचानक वो सामने आ जाता है,और आँख खुली रह जाती है,और हम बेनकाब हो जाते हैं।उस रोज सृजन्या को आते देख ऐसे ही मैं रुका और ढेर सारी बातें, आँखों के सामने से गुज़र गईं।उसकी और मेरी गहरी दोस्ती,जिसमें कुछ भी छुपा नहीं था।सृजन्या की और मेरी फैमिली एक ही कॉलोनी में रहती थी,(शहर आप अपने हिसाब से तय कर सकते हैं)हम दोनों क्लासमेट्स थे,सेंट जोसफ के।सृजन्या और मैं अक्सर क्लास में लगभग