द्रोणाचार्य और एकलव्य

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एकलव्य एक बहादुर बालक था, वह जंगल में रहता था, उसके पिता हिरण्यधनु उसे हमेशा आगे बढ़ने की सलाह देते थे। एकलव्य के आसपास हथियारों का बड़ा महत्व था, हरेक को अस्त्र-शस्त्र चलाना आना जरूरी था। एकलव्य को सबसे ज्यादा प्रिय धनुषबाण थे, लेकिन जंगल में उन लोगों के पास न उम्दा धनुष थे न मजबूत बाण। फिर भी उसने हार नहीं मानी थी वह उपलब्ध साधन से धनुष बना कर पूरी लगन से प्रायः अभ्यास में जुटा रहता था। उस वक्त भी वह बांस के बने एक छोटे से धनुष पर बांस का ही बना बाण चढ़ा