तिरस्कृत

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जल्दी जल्दी हाथ चलाते हुए सुमित्रा गरमा गरम परांठे बनाकर सब को दे रही थी। सुबह का नाश्ता सब साथ ही करते थे । फटाफट परांठे सेंक कर सुमित्रा दोनों बेटे बहू और पति को दे रही थी सुबह की भाग दौड़ कुछ ज्यादा ही हो जाती है । सबको काम पे जाना होता। दोनों बेटे कमल नयनऔर पति को भेज कर सुमित्रा बैठी तो बहू ने आकर पूछा, "मां नाश्ता लाऊं?" हां ...¡ कहने पर बहू ने आलू के परांठे लाकर समने रख दिया। नाश्ते के बाद चाय की चुस्कियां लेते हुए बहू संग बात में व्यस्त हो गई।