कहानी - इंसानियत मैं पूरे दो साल बाद बेटे के साथ पटना आया था . बंगलुरु से पटना तक तो फ्लाइट से आया , पर पटना से अपने गाँव तारेगना तक एक घंटे का सफर ट्रेन से तय करना था . हम यह सोच कर गाँव जा रहे थे कि जो थोड़ी बहुत प्रॉपर्टी है उसे बेच कर अब बंगलुरु में बेटे के साथ ही रहना होगा क्योंकि अब मैं अकेले रहने लायक नहीं था . गाड़ी शहर से थोड़ी दूर निकली तो पटरी के दोनों तरफ हरे भरे खेत देख कर बीते दिनों की यादें मेरी स्मृति