महामाया - 34 - अंतिम भाग

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – चौंतीस रात लगभग साढ़े ग्यारह बजे का समय था। आश्रम में सन्नाटा था। कमरे में बाबाजी अपने आसन में बैठे थे और अनुराधा उनके सामने सिर झुकाये बैठी थी। ‘‘बेटे पिछले कुछ दिनों से आप बहुत परेशान दिख रही हैं क्या बात है?’’ ‘‘कुछ खास नहीं बाबाजी, मन का विचलन बहुत बढ़ गया है। समझ में नहीं आता कि क्या करूँ?’’ अनुराधा के स्वर में निराशा थी। ‘‘लगता है आजकल आप ध्यान नहीं कर रही हैं?’’ ‘‘करती हूँ बाबाजी, लेकिन आँखें बंद करते ही विचार और ज्यादा परेशान करने लगते हैं। मन शांत होने के