कहानी-- अंगूरी अंग आर.एन. सुनगरिया ‘’गीता.....गीता.....अरे किधर चली गई। गुडि़या तो यह सो रही है।‘’ ‘’अभी सोई है।‘’ कहते हुये गीता अपनी रंगीन धोती से हाथ पोंछती हुई आई, ‘’कहिए, आज तो खुशी से ऐसे चीख रहे हो जैसे आपका क्लास रूम यही हो।‘’ ‘’खुशी क्यों ना हो तुम्हारा पत्र जो है मेरे हाथ में।‘’ गीता ने पत्र पर तुरन्त नजरें बिखेर दीं, ‘’झूठ! पते में आपका नाम श्री ओम प्रकाश चौधरी लिखा है।‘’ ‘’नाम मेरा है, पर पत्र तुम्हारा।‘’ ‘’प्रेषक?’’ उसके चेहरे पर गीता की साश्चर्य नजरें मंडराने लगी। ‘’तुम्हारे भूतपूर्व