लच्छो

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नाम तो लक्ष्मी था उसका, लेकिन ऐसे नाम भाग्यहीनों, गरीबों और अनाथों को शोभा नहीं देते। शायद यही सोचकर पूरा मुहल्ला उसे लक्ष्मी नहीं लच्छो कहता था। उसकी प्रसिद्धि का कारण उसका नाम हो ऐसा नहीं था, बल्कि उसका बावलापन था। पूरे मुहल्ले में वह किसी के भी घर में चली जाती कि कहीं कुछ खाने-पीने को मिल जाए। प्रायः हर घर में उसे बासी भोजन या सूखी रोटी मिल ही जाती जिसे वह बहुत चाव से खाती मानों कई दिनों की भूखी हो। कभी-कभी बोल भी देती “चा दे दिओ...” तो उसे वह चाय भी मिल जाती जो उबली