पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 14

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पूर्णता की चाहत रही अधूरी लाजपत राय गर्ग चौदहवाँ अध्याय मीनाक्षी के विवाह के आठ-दस महीने बाद की बात है। जब वह ऑफिस से निकली, तभी आँधी चलने लगी। दिन में ही चारों तरफ़ अँधेरा छा गया। घर पहुँची तो आँधी-झक्खड़ तो रुक गया, लेकिन चारों तरफ़ धूल-मिट्टी फैली मिली। थोड़ी देर बाद ही बरसात शुरू हो गयी। धूल-मिट्टी के ऊपर बरसात। चहुँओर कीचड़-ही-कीचड़ हो गया। मीनाक्षी ने नौकर से छत के नीचे का सारा एरिया साफ़ करवाया। मौसम का मिज़ाज अभी भी बिगड़ा हुआ था, बादलों की गर्जन-तर्जन अभी भी जारी थी। आसार ऐसे थे कि किसी समय भी