दह--शत - 18

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दह--शत [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] एपीसोड --18 समिधा कविता की हिम्मत देखकर दंग रह गई, “पता तो लग ही गया है ।” “अच्छा!” उसकी आवाज़ का संतुलन वैसा का वैसा था, “सच ही हम लोगों को आपके लिए, भाईसाहब के लिए बुरा लगता है । मैं व सोनल रात में नौ बजे घूमने निकले थे । अब आप चारों स्कूटर पर जा रहे थे । सोनल ने तो तब भी कहा था कि ज़रूर कोई सीरियस बात है ।” समिधा जान-बूझकर कहती, “किस दिन हमको देखा था?” “संडे को । भाई साहब के लिए बहुत चिन्ता हो रही है ।”