चाँद के पार एक चाबी - 2

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चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 2 इस बार तो मैं सचमुच अन्दर तक हिल गया। मेरे सामने एक ऐसा यथार्थ था, जो मेरे तमाम लिखे-पढ़े को मुुंह चिढ़ा रहा था। यह किताबों से परे, पफैंटेसी से बाहर, सांघातिक अनुभव था, मेरे उफपर घड़ों पानी डालता हुआ। ‘नहीं पिंटू, इसकी कोई जरूरत नहीं हैं।’ मैने उसे बरजने के लिए एक-एक शब्द पर जोर दिया, ताकि वह इस आग्रह से उबर जाय। कप ट्रे में रखकर उसने मुझे कृतज्ञ भाव से देखा और पिफर जैसे उसके अंदर खदबदाती बेचैनी बेसाख्ता बाहर निकल आई, ‘सर, गांव में आज भी कुछ नहीं