चैतन्यअभी बसंती बयार की आहट थमी नहीं थी, कि पतझर की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। ऋतु परिवर्तन सिर्फ बाहरी वातावरण में नहीं होता, एक मौसम मन के भीतर भी होता है... कभी बसन्त तो कभी पतझर.... बसंत आता नहीं, लाया जाता है…जो चाहे, जब चाहे, जैसे चाहे... बसन्त का स्वागत कर सकता है। चैतन्य जब चाहता था उसका मन बसंती हो जाता था। वह सिर्फ अपनी आँखें बंद करता था और..... बसंती फूलों की महक सी गौरैया की यादें उसके नथुनों से होकर दिमाग तक पहुँच जातीं। प्रकृति में चारों और रंग बिरंगे फूल खिल जाते... बिल्कुल वही दृश्य उसे