आज फिर एक उम्मीद मिट गई

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उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। मैं अपनी लोकल ट्रेन में कॉलेज के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम से वापस लौट रही थी। मेरे सामने की सीट पर एक 23 - 24 साल का नौजवान युवक बैठा था। उसने फॉर्मल कपड़े पहने रखे थे। उसके हाथों में रिज्यूम वाली फाइल्स थी जैसे की किसी इंटरव्यू से लौट रहा हो। ट्रेन अपने फुल स्पीड पर भागती जा रही थी। उस बोगी में बैठे लगभग सभी लोग अपने - अपने मोबाइल में खोएं हुए थे। कोई माने या ना माने लेकिन सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते इंसान ने अब गांधी जी के चौथे