आधा आदमी - 25

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आधा आदमी अध्‍याय-25 मैंने पहले अपना क्वाटर बेचा और फिर सारा रूपया लाकर मैंने घर पर रख दिया। मकान की छत खुलते ही मैंने पूजा-पाठ करा के घरवालों को गृह प्रवेश करवा दिया। मैं बहुत खुश था, कि क्योंकि मैंने पिताजी का सपना पूरा कर दिया था। पर कहीं न कहीं मैं बेहद दुखी भी था, कि जीते जी मैं अपने पिताजी को ला न सका। ड्राइवर को जब मेरे पिता जी के मरने की खबर मिली तो वह भागा-भागा मेरे पास आया। मैंने शुरू से लेकर अंत तक अपना दुखड़ा उसके सामने खोल के रख दिया। साथ-साथ मैंने यह