सलोनी का फोन

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आज होली के त्योहार में जहां सब मगन थे वहीं महंगू का चित्त खोया खोया था..महंगू की दुलहिन अंदाजा लगा तो रहीं थीं पर एक अन्जाने भय से कांप जातीं..घर में उल्लास का माहौल था..दोपहर के एक बज गये थे..बच्चे नहा धोकर नये नये कपड़े पहने,अबीर लगाये घूम रहे थे..वहीं महंगू बाहर दालान में उदास हुये बैठे थे.."अम्मा ! बापू से आज खाने को नही कहोगी..?" बहू ने महंगू की दुलहिन से कहा था..पर उनकी हिम्मत नही हो रही थी..वह समझ रही थीं.. बहुत कहने पर वे खाने तो आ जायेंगे पर खा नही पायेंगे..महंगू के पिता जब मरने को हुये