" प्रेम" "क्या हुआ दीदी तब से देख रही हूँ रसोई घर में इधर से उधर घूम रही हो कुछ ढूंढ रही हो क्या?" "नहीं तो !" सुरभि ने थोड़ा अनमने ढंग से कहा, "और तू घर का क्या मुआयना करने में लगी है ? तू आकर बैठ में खाना लगाती हूँ। " "यह क्या मेरी प्लेट में इतना कुछ और अपनी प्लेट में सिर्फ एक रोटी और एक सब्जी !" " ठीक तो है। इससे ज्यादा की भूख नहीं। " "क्या ठीक है ?" "आपने अपनी सेहत देखी है? आधी हो गई हो सुख कर । आँखें धस कर