महामाया - 29

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – उनत्तीस अखिल ने कमरे में जाकर कपड़े बदले और आलथी-पालथी लगाकर पलंग पर बैठ गया। दरवाजा खुला था। थोड़ी देर में अनुराधा ने कमरे में प्रवेश किया। अनुराधा के हाथ में एक शाॅल थी। ‘‘वाह! बहुत सुंदर शाॅल है। बाबाजी के लिये लायी थी?’’ अखिल ने शाॅल अपने हाथ में लेते हुए पूछा। ‘‘तुम्हे गिफ्ट करने के लिये नौगाँव से खरीदी थी।’’ अनुराधा ने खड़े-खड़े कहा। ‘‘फिर तुमने मुझे गिफ्ट क्यों नहीं की?’’ ‘‘सोचा था, कोई अच्छा अवसर आयेगा तो तब तुम्हें गिफ्ट करूंगी।’’ ‘‘बैठो न! खड़ी क्यों हो।’’ ‘‘नहीं रात बहुत हो गई है।