मन की बात - 1 - वहां आकाश और है........

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अचानक से शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था। मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली। पेड़ -पौधों पर झर-झर गिरता पानी एक कुदरती फव्वारे सा हर पेड़-पौधे को नहला कर उसका रूप संवार रहा था। इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तन-मन भिगो ले। मगर उसकी दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा। मानो कह रही हों, ‘हमें छोड़ कर कहां चली? पहले हमसे तो रूबरू हो लो।’‘रोज वही ढाक के तीन पात। मैं ऊब गई हूं इन सबसे। सुबह शाम बंधन ही बंधन। कभी तन के, कभी मन के।