सुनो मीता !

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सुनो मीता !मैंने कितने ख़्वाब बुने थे तुम्हारे साथ ,हर ख्वाब का एक एक धागा प्यार के रंग में रंगा था ,उनका रंग कितना चटकीला था ऐसे ही चटक रंग तो हम दोनों को पसंद है। याद है उस दिन सीढ़ियों पर बैठकर हम दोनों चंपई आसमान को देख कितना खुश थे ,हां आसमान उस दिन सूरज की लाली से चम्पई ही तो हो गया था ,तुमने कहा था “यह चम्पई ही रंग तुम्हारे चेहरे पर उतर आया है, कितनी आभा समा गई है तुममें "। मेरी नजरें आसमान से सीधे सीढ़ियों के अंतिम पायदान पर जाकर टिक गई थी