एक बूँद इश्क (11) क्या मैं जाने से पहले काबेरी काकी और शंकर दादा से नही मिल पाऊँगी? कितना याद आयेगें सब मुझे? और गणेश दादा? वह तो कितना अपने हो गये हैं? सबसे दूर हो जाना कितना मुश्किल लग रहा है? इन अनकहे पलों का क्या? जो न तो परेश समझेगा और न ही कोई और? मेरी और परेश की परिभाषा को परीक्षा में बदला जाये तो कितनी भिन्न होगी? दूर-दूर तक एक-दूसरे से कोई मेल नही। ईश्वर भी विपरीत व्यक्तित्व को उम्र भर एक ही रस्सी से बाँध कर तमाशा देखता है। ख्यालों के ताने-वानें में घिरी वह