नैना को एक अंधेरी कोठरी में पलंग के ऊपर बिठाकर घर की सारी औरतें बाहर निकल गयीं। मई माह की गर्मी और उसपर बनारसी साड़ी, गहने, सबकुछ नैना को बहुत ही असुविधाजनक लग रहा था मगर न तो उसके माथे पर कोई शिकन थी और न ही उसके होठों पर कोई शिकायत। अब भला शिकायत करती भी तो किससे ? जहाँ शिकायत कर सकती थी,वहाँ तक तो कभी की नहीं और उसकी ये चुप्पी आज उस शहर की पढ़ी लिखी नैना को एक गाँव में ले आयी जहाँ पर बिजली तक का कोई ठिकाना नहीं था। पिता जी की मृत्यु