बात करीबन 7 साल पहले की है जब मैं पूर्णिया से मोतिहारी पढ़ने के लिए गया था,नई जगह नई लोग नई दोस्त,जब जीवन में नए चीज होने लगती है तो,,और उसमें भी अच्छा,जीवन जीने की उमंग और बढ़ जाती है,मोतिहारी स्कूल में मेरा दाखिला हो चुका था,स्कूल से कुछ दूरी पर ही मेरा लाँज था, उस लॉज में , मेरे व अन्य और भी कई दोस्त हैं,खुशी की बात यह थी,जिस लाज में रहा करता था,वह असल में लाँज नहीं था,वहीं पर रह रहे परिवार ने हमें अपने रूम किराए पर दिया था,हमारे लाँज से ठीक सामने एक परिवार रहता