सीता: एक नारी - 7 - अंतिम भाग

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सीता: एक नारी ॥ सप्तम सर्ग॥ निर्विघ्न सकुशल यज्ञ मर्यादा पुरुष का चल रहा किस प्राप्ति का है स्वप्न उनके हृदयतल में पल रहा ? अर्धांगिनी के स्थान पर अब तो सुशोभित मूर्ति है यह लोक-भीरु राम के किस कामना की पूर्ति है? अति प्रज्वलित बहु यज्ञ कुण्डों से लपट है उठ रहीसमवेत पाठन से ऋचा के गूँजते अम्बर मही स्वाहा स्वरों के साथ समिधाएँ निरंतर पड़ रहींपर ताप यह हिय-दग्धता के सामने कुछ भी नहीं हैं पुत्र आनंदित बहुत ही अंक में निज तात केविस्तार जैसे लग रहे वे राम के ही गात के पाकर उन्हें परिजन सभी अत्यंत ही हर्षित हुएअवधेश