पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 2

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पूर्णता की चाहत रही अधूरी लाजपत राय गर्ग दूसरा अध्याय जब वह वी.सी. से मिलने आयी थी तो सूर्य अस्ताचलगामी था, अपना प्रकाश समेट रहा था। लेकिन जब वह वी.सी. निवास से बाहर आयी तो घुप्प अँधेरा था। अँधेरे की सघनता को देखकर लगता था जैसे कृष्ण पक्ष की द्वादश या त्रयोदश हो। आसमान धूल-धूसरित था। इसलिये तारे कम ही दिखायी दे रहे थे। हवा ठहरी हुई थी। आसार ऐसे थे जैसे कि आँधी-तूफ़ान आने वाला हो! जब वह घर पहुँची तो मौसी ने पूछा - ‘मीनू, क्या बना छोटी के दाख़िले का?’ ‘मौसी, मैं कोशिश कर रही हूँ। उम्मीद