दह--शत - 6

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दह--शत [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] एपीसोड --6 इधर जबसे कविता के रिश्तेदार को ट्रांसफ़र के कारण शहर छोड़ना पड़ता है। कविता उसके पीछे पड़ी रहती है, “ आपका भी दिल नहीं लगता, हम लोगों का भी। कम से कम महीने में एक ‘ संडे ’ तो हम लोग साथ में डिनर लिया करें। ” वह बहाना बनाती है, “ हम लोग इस शहर में बरसों से रह रहे हैं कितने ही ‘सोशल ऑर्गनाइजेशन’ से जुड़े हुए हैं। कोई न कोई पार्टी चलती रहती है। ” “ फिर भी कभी-कभी क्या बुराई है? ” “ बाद में देखा जायेगा। ” वह