सीता: एक नारी - 6

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सीता: एक नारी ॥ षष्टम सर्ग॥ कितने युगों से अनवरत है सृष्टि-क्रम चलता रहा इस काल के अठखेल में जीवन सतत पलता रहा गतिमान प्रतिक्षण समय-रथ, पल भर कभी रुकता नहीं सुख और दुःख भी मनुज-जीवन-राह में टिकता नहीं उल्लास के दिन बीतते, कटती दुःखों की यामिनी होता अमावस तो कभी, भू पर बिखरती चाँदनी घनघोर काली रात का अब कलुष है कम हो गया संलग्न जीवन-ग्रन्थ में मेरे हुआ पन्ना नया आश्रम बनी तपभूमि मेरी, पुत्र पालन साधना दो पुत्र ओजस्वी बहुत, पूरी हुई हर कामना यह काल सीता के लिए मातृत्व का उत्कर्ष हैविच्छोह-दुःख के साथ ही सुत प्राप्ति का अब हर्ष है गर्वित हृदय, भावी अवध