एक अप्रेषित-पत्र - 5

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एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म कोई नया नाम दो ‘‘जागते रहो'' मध्य रात्रि की निस्तब्धता को भंग करती सेन्ट्रल जेल के संतरी की आवाज और फिर पहले जैसी खामोशी। मैं जाग रहा हूँ। 3श् ग 6श् की काल कोठरी में काकरोचों की चहल कदमी और मच्छरों की उड़ानों के बीच इस कोठरी में मुझे आये अभी चार दिन ही हुए हैं। यहाँ मुझे अन्य कैदियों से एकदम अलग रखा गया है। सभी मुझे नृशंस हत्यारा समझते हैं। चार दिन पहले की बात है, जब सेशन जज ने भरी अदालत में अपना फैसला सुनाया था, ‘‘तमाम गवाहों के बयानात व दोनों पक्षों