नूरीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 6 अम्मी तुमने मेरे सामने इसके अलावा कोई रास्ता नहीं छोड़ा है। इसलिए जा रही हूं। हो सके तो गुनाहों से तौबा कर लेना। ज़िंदगी बड़ी खूबसूरत है। इसे खूबसूरत बनाए रखना अपने ही हाथों में है। अच्छा अल्लाह हाफिज।‘ नुरीन के खत को पूरा पढ़ते-पढ़ते नुरीन की अम्मी पसीने से नहा उठीं। उन्हें सब कुछ हाथों से निकलता लग रहा था। हाथों से कागजों को मोड़ कर उन्हें जल्दी से एक अलमारी में रख कर ताला बंद कर दिया। और दुल्हा-भाई को फ़ोन करने के लिए उस कमरे में जाने को उठीं जिसमें लैंडलाइन