बडी प्रतिमा (5.) एक सुहानी सुबह ! शनिवार का दिन था। पूर्णिमा का चांद अभी पश्चिम में चमक ही रहा था। आज नजदीक के कस्बों से छात्रावास में आई सभी छात्राएं अपने-अपने घर जानेवाली थीं । अब वे चार दिन के बाद ही आतीं। कुछ लडकियां जो दूर से आई हुई थीं, वे इन चार दिनों की छुटिटयों में भी हाॅस्टल में ही रहनेवाली थीं। विभा इस बार घर नहीं जा रही थी। उसे अपने कैप्स्यूल पूरे करने थे। चूंकि आज ज्यादातर छात्राएं घर जानेवाली थीं इसीलिए मेस में ड्यूटियर की कमी थी। उसने सोचा था कि मीरा का हाथ