शहर के शहर सन्नाटे में डूबे थे, हर तरफ एक सन्नाटे का शोर था वो लोगों के रोने का बिलखने का शोर था, नियति हंस रही थी मानव पर, दिन-रात प्रकृति को असंतुलित करने वाले मानव आज एक लाचार दुखी जीवन जी रहे थे, ऐसा लग रहा था कि यह महामारी एक प्रतिशोध हो धरती का | महामारी की वजह से लॉक डाॅउन भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था, लोग उम्मीदें लगाते कि अगले महीने लॉक डाउन खुलेगा, अगले कुछ दिनों बाद लॉक डाउन खुलेगा लेकिन लॉक डाउन था जो सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही चला जा रहा था,