हमदर्दी

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सूखे की मार झेल रहे किशन ने गाँव से पलायन कर शहर में अपना डेरा जमा लिया । शहर में पहले से ही रह रहे उसी की गाँव के गोपाल ने उसे किराए का एक कमरा दिलवा दिया । अपने दो बेटों सोनू और मोनू के साथ वह उस पुराने जर्जर ईमारत की निचली मंजिल के एक कमरे में रहने लगा । रोजगार के नाम पर करने के लिए उसके पास कुछ काम नहीं था । आज भी वह सुबह जल्दी तैयार होकर शहर में उस नुक्कड़ पर खड़ा था जहाँ सभी दिहाड़ी मजदूर आकर खड़े होते थे । एक तरह