मध्य रेखा

  • 3.1k
  • 870

डॉ. नीरज सुधांशु मध्य रेखा उस स्पर्श से उपजी पुलक आज भी समायी है उसके मन-प्राण में। वो मीठा अहसास, उसका खयाल भर आज भी मन को सुकून दे जाता है। ताज़गी से भर देता है तृष्णा को। पहले प्यार की तासीर का रोम-रोम गवाह है। इतने वर्षों बाद भी उनके प्यार की निकटता आज भी बरकरार है। उस प्यार की डोर आज भी जोड़े हुए है दोनों को। इस बार वह लंबे अंतराल के बाद अमरीका से स्वदेश आ रहा है। और अब वह यहीं रहकर बिज़नैस करेगा, यह सुना है तबसे तो तृष्णा का मन बल्लियों उछल रहा