कहाँ है मन?

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चीन का सम्राट अनगिनत जीत हासिल करके भी बहुत परेशान था। मन मे उठते हुए विचार उसके चितवन मे अनगिनत तरंगे पैदा कर रहे थे। उसकी आत्मा भीतर से बेचैन थी। वो जितना राज्यों पर जीत हासिल करता, उसके मन मे बेचैनी उतनी हीं बढ़ती चली जाती थी। उसका राज्य जब छोटा था, जब उसे और बड़ा करने की बेचैनी थी। फिर जब साम्राज्य फैलता गया, उसे बड़े राज्य को संभालने की जरूरत आन पड़ी। अनेक शत्रुओं से राज्य को सुरक्षित करने की जिम्मेवारी जो अलग थी सो अलग। जितनी उसकी ताकत बढ़ती जाती, उसके शत्रु भी उसी रफ्तार से बढ़े