* गोपियाँ बोली *गोपियाँ विराहावेश में गाने लगीं…प्यारे ! तुम्हरे जन्म के कारण वैकुंड आदि लोकों से भी व्रज की महिमा बढ गई है, तभी तो सौन्दर्य और मृदुत्नता की देबी लक्षमी जी भी अपना निवासस्थान वैकुंड छोड़कर यहाँ नित्य निरंतर निवास काने लगी हैं इसकी सेवा करने लगी हैं । परन्तु , प्रियतम्! देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे चरणों मैं ही अपने प्राण समर्पित कर रखे हैं वन -वन में भटक कर तुम्हें ढूंढ रही हैं। । ९ ।