महामाया - 13

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तैरह केलकर भवन में इतना बड़ा हॉल था। सौ-सवा सौ लोग आराम से बैठ सके। वहाँ एक बड़ी दरी बिछी हुई थी। दो तीन भगवा झोले पडे़ थे। एक रस्सी पर भगवा धोतियाँ सूख रही थी। यहाँ कुछ सन्यासी ठहरे हुए थे। जो फिलहाल कहीं गये हुए थे। ऊपर के तल पर तीन कमरे थे। जग्गा ने एक कमरे का दरवाजा धकेला वहाँ तीन-चार लोग ताश खेलने में मस्त थे। दूसरे कमरे में खप्पर बाबा दो-तीन साधुओं के साथ भोजन कर रहे थे। तीसरे कमरे में दरवाजे के सामने ही आँखें बंद किये एक संत