जो घर फूंके अपना - 37 - घरवाली बनाम अर्दली

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जो घर फूंके अपना 37 घरवाली बनाम अर्दली बुद्ध जयन्ती पार्क में ज्योति के साथ बिताया हुआ वह थोडा सा समय मुझे बहुत दिनों तक मीठा मीठा दर्द देकर सालता रहा. तबतक किसी लडकी के सान्निध्य का अवसर मुझे केवल सोवियत रूस में मिला था. उसे भी लीना के साथ अपनी गलत सलत रूसी भाषा बोलकर मैंने बर्बाद कर दिया था. अपने देश में तो ज्योति ही वो पहली लडकी थी जिसके साथ मैंने एकांत के कुछ पल बिताये थे. नूरजहाँ ने भोलेपन से अपने नाज़ुक हाथों में पकडे कबूतर को उड़ाया था तो जहांगीर उस पर मर मिटा था.