देवास की वीरा

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देवास की वीराप्रकृति और मन दोनों एकाकार हो रहे थे ,बाहर बादलों का गर्जन और मन के भीतर असहनीय पीड़ा का नर्तन ...देवास की महारानी वीरा की आँखे पथरा गई थीं ,अश्रु आंखों में जम से गए थे ,कैसे हो गया ये सब ,कभी ऐसी स्थिति का चिंतन तक नहीं किया .. ..एक शून्यता ,एक स्तब्धता से महारानी वीरा घिर गई थी कि अचानक आकाश में बादलों के बीच कड़कती हुई बिजली चमकी ,महारानी वीरा की स्तब्धता में स्मृतियों की झनकार हुई । ….उस दिन महाराज वीरभद्र युद्ध से लौटे ही थे ।महारानी वीरा ,महाराज वीरभद्र के साथ परिसर के