कुबेर डॉ. हंसा दीप 43 देश को छोड़ने वाले प्रवासियों की आत्मा भारत के अपने गाँव-शहर में अपनी बिछुड़ी यादों को खोजती रहती है और शरीर यहाँ अपने लिए नयी ज़मीन तलाश कर रहा होता है। ऐसा कटु सत्य था यह जो विदेश में बसे हर नागरिक को अपनी कटी जड़ों के लिए संघर्षरत ही पाता था। भाईजी जॉन और डीपी सुन रहे थे। कभी राजा और कभी रंक, कभी गुलाब और कभी काँटों के वे पल भाईजी और डीपी से ज़्यादा अच्छी तरह कोई नहीं समझ सकता था। तभी सोमेश आ गया। सत्यवती जी ने उसे फ़ोन पर जॉन