शक्ति

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कहानी - " शक्ति" शरद ऋतु की गुनगुनी धूप और रंग बिरंगे फूलों की खुशबू ने पूरे वातावरण को अपने खुशनुमा आगोश में भर रखा था। आज बरसों बाद फिर से एक बार अमृता को एक ऐसी खुशी के आनंद की अनुभूति हो रही थी जिसकी उसे बेसब्री से प्रतीक्षा थी। मन अनगिनत सपनों की दुनिया में विचर रहा था। "बहूरानी चाय लाऊ तुम्हारे लिए?" हरि काका की आवाज से अमृता की तंद्रा टूटी। "चा.. आ..य.. ठीक है काका ले आओ..,। और हाँ सुनो.. अपने लिए भी लेते आना।" अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा। हरि काका ने मुस्कुराते